गुरुवार, 14 जनवरी 2016


कानूनविद् के नाम विश्वविद्यालय में मूट कोर्ट के बिना कानून का अध्यन


कानूनविद् के नाम विश्वविद्यालय में मूट कोर्ट के बिना कानून का अध्यन डा.हरिसींग गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय का मामला डा.एल.एन.वैष्णव सागर/इसे दुर्भाग्य नहीं तो क्या कहेंगे कि कानूनविद् के नाम से विश्वविद्यालय हो और उसी विश्वविद्यालय मेें कानून का अध्यन करने वालों को मूट कोर्ट के आभाव में अध्यन करना पड रहा हो? जी हां यह एक कडवा सच है कि डा.हरिसींग गौर विश्वविद्यालय जहां कानून के अध्यन करने वालों के लिये उक्त सुविधा अनिवार्य होते हुये भी प्राप्त नहीं हो पा रही है?ज्ञात हो कि 1939-40 के करीब उक्त विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी थी एवं गत 2009 में इसको केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया है। सूत्रों की माने तो छात्रों को उक्त लाभ के लिये स्वयं के व्यय पर अन्य विश्वविद्यालयों की ओर रूख करना पडता है? जानकार बतलाते हैं कि जिस प्रकार अन्य विषयों में अध्यन करने वालों को प्रयोग करने तथा कराने का विधान है ठीक वैसे ही कानून का अध्यन करने वालों के लिये मूट कोर्ट में प्रशिक्षण देना एवं लेना आवश्यक है। अगर वह अध्यन के साथ प्रयोग नहीं कर पाते तो उनके जीवन में विधि व्यवसाय के दौरान न्याय करने एवं करवाने में निश्चित रूप से परेशानी होना ही है एैसा जानकारों का मानना है? कानूनविद् के नाम विश्वविद्यालय में उक्त सुविधा का आभाव होना उच्चाधिकारियों की घोर लापरवाही की ओर ईशारा करता है। सूत्र तो यहां तक बतलाते हैं कि मूटकोर्ट के लिये शासन ने राशि उपलब्ध करा दी है परन्तु क्या हुआ क्यों हुआ और क्यों नहीं हुआ इन प्रश्रों का जबाब किसी के पास नहीं है? इसी क्रम में बात करें छात्राओं के लिये निर्मित छात्रावास की तो सूत्र बतलाते हैं कि लगभग तीन बर्षों से उद्घाटन की वाट यह जोहने में लगा हुआ है और छात्रायें इसमें रहने के लिये? अब बात करें ई लाईब्रेरी की तो नाम न छापने की तर्ज पर कानून के अध्यन में लगे छात्र-छात्रायें बतलाते हैं कि इसके तो दर्शन ही नहीं हुये?